पोषक पदार्थ उद्योग का कमजोर पक्ष यह है कि भारत और दुनिया के दूसरे देशों में नकली सप्लीमेंट जो ना केवल आपको आपके इच्छा अनुसार लाभ से वंचीत रखती है, बल्कि यह नुकसान भी पहुंचाती है। हम आपको बताते हैं कि कैसे आप नकली सप्लीमेंट को पहचान सकते हैं।
जैसा की अभी तक आप में से कुछ लोग जानते हैं कि सप्लीमेंट केवल शरीर को बढ़ाने के लिए नहीं होते है, बल्कि इसके और भी कई गुण हैं। इसकी पहचान पर चर्चा करने से पहले यह समझना जरूरी है कि सप्लीमेंट का फर्जी धंधा होता क्यों है? जो ब्रांड आयात होकर बाहरी देशों से आते हैं वे महंगे होते हैं। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए है क्योंकि इन पदार्थों पर एक्साईज़ ड्यूटी, कस्टम, ट्रांसपोर्टेशन और तरह-तरह के टैक्स लगाए जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि जो सप्लीमेंट अमेरीका में आप 3500 रूपये में खरीदते है वह भारत में 6000 से 7000 रूपये में आएंगे। रूपये का यह अतंर बताता है कि एक ही पदार्थ के लिए अलग अलग देशों में ग्राहक ज्यादा पैसे खर्च करने पर मजबूर है। इसका अर्थ यह भी हुआ कि सप्लीमेंट के प्रमुख ग्राहक- युवा और छात्र हैं जो बॉ़डीबिल्डिंग बाजार से जुड़े होते हैं, वे सप्लीमेंट खरीदने के लिए दूसरे विकल्पों की तलाश में रहते है जिन पर की खर्च कम आए।
सिक्के का एक पक्ष तो यह कहता है कि जब बात शारीरिक कसरत की आए तो खर्च महत्व नहीं रखना चाहिए। जो छात्र-छात्राएं पीजी में तीन वक्त का खाना खाते हैं, उन्हें लगता है खाने पर ध्यान ना देकर सप्लीमेंट पर ध्यान देंगे तो उनके शरीर का विकास जल्द होगा जैसे मानो उन्हे जादूई रास्ता मिल गया हो। सप्लीमेंट के प्रति सबसे बड़ी विडंबना यही है। इसीलिए ज्यादातर लोग जो शरीर बढ़ाना चाहते हैं वे सस्ते (नकली) सप्लीमेंट लेते हैं।
अब, आप में से कुछ लोग कह सकते हैं कि नकली और सस्ते सप्लीमेंट में खराबी क्या है? इस प्रकार के सप्लीमेंट में सबसे नुकसान दायक बात है कि इसमें हानिकारक पदार्थ होते हैं। वीट प्रोटीन की जगह गेंहू का पाऊडर और क्रियेटिन के जगह पर नमक जैसे पदार्थ मिले होते है जिस पर 2000 रूपये आसानी से खर्च कर देते हैं। वास्तव में यह बहुत बड़ा धोका है।
इसके अलावा, इसके पहचान करने के दौरान हम पाते हैं कि इसमें कई घातक पदार्थ मिलाए जाते हैं। नकली सप्लीमेंट में स्टेरोइड्स की मत्रा कम होती है। सभी सप्लीमेंट में तो नहीं पर हाँ कुछ एक में स्टेरोइड्स की मात्रा कम कर दी जाती है क्योंकि यह एक महंगा पदार्थ है। कंपनी खर्च बचाने के चलते इसकी मात्रा से समझौता कर लेती है। खासकर वे नए प्रोड्क के साथ ऐसा करते है। प्रोड्कट बाजार में उतारते वक्त तो स्टेरोइड्स की मात्रा ठीक होती है जिसका असर भी उपभोक्ताओं को तुरंत दिखता है लेकिन दूसरे फेज में इसकी मात्रा कम कर दी जाती है। स्टेरोइड्स से तुरंत फायदा तो होता पर इसके साइड इफेक्ट्स बहुत हैं, जैसे-टेस्टीकुलर एट्रोफी, एक्ने, और व्यवहार में परिवर्तन। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि नकली सप्लीमेंट से सप्लीमेंट ना खाना ज्यादा अच्छा है।
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नकली सप्लीमेंट का पता लगाने का सबसे आसान तरीका है खुद अधध्यन कर लेबल को ध्यान से समझना। नकली सप्लीमेंट का लेबल में बहुत सी त्रूटियां होती है जैसे की लिखावट में अतंर, गलत स्पेलिंग, गलत रंग, खराब लोगो आदि। और ऐसे प्रोड्कट के टैग लाइन भी गलत हो सकते है तो हम कह सकते हैं कि पहली नज़र में अब आप पता लगा सकते हैं कि जो पदार्थ आपने खरीदा है वह नकली है या असली।
इसके अलावा नकली सप्लीमेंट पर लगी लेबल भी गलत होती है। मतलब की असली सप्लीमेंट में पाए जानेवाले पदार्थों की व्याख्यान नकली वाले में गलत होती है। अब बात आती है इसे आप कैसे जानेगें? उपभोक्ता को पदार्थों के व्याख्यान का पता होना चाहिए क्योंकि नकली सप्लीमेंट में कैलोरीज और दूसरे तत्वों की मात्रा स्पष्ट नहीं होती है।
2. बनने की तारीख देखें-
हमें पता है, यह एक स्टेंडर्ड तरीका है जो उपभोगता उपयोग में लाते है, लेकिन यही सबसे कारगर तरीका भी है, क्योंकि ज्यादातर कंपनियां यही पर गलती करते हैं, अलग-अलग नकली सप्लीमेंट में बनाने की तारीख अलग-अलग दे देते हैं। ज्यादतर प्रोड्क्टस की बनने की तारीख डब्बे के नीचे, ढक्कन के बगल में या फिर डब्बे पर लिखा होता है। इसे आप जरूर देखें अगर बनने की तारीख ना हो तो वह सप्लीमेंट जरूर नकली होगा।
बनने की तारीख हमेशा तार्किक होनी चाहिए। कुछ प्रोड्क्ट में बनने की तारीख भविष्य की होती है यानी 2016 में खरीदते वक्त सप्लीमेंट पर 2019 लिखा होता है। सप्लीमेंट खरीदते वक्त एलओटी नम्बर जरूर चेक करना चाहिए। अगर इसकी बनावट गलत है तो आपको मान लेना चाहिए की सप्लीमेंट नकली है।
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3. सील की जांच करें-
असली-नकली सप्लीमेंट की जांच की प्रक्रिया में सील की जांच करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे दो प्रकार से जांचे- पहला, आगर प्रोड्क्ट के सील से छेड़खानी की गई हो समलन सील फटी हो या इसके होलोग्राम गलत हो या नकली लग रही हो तो ऐसे प्रोड्क्ट से दूरी बना लें। दूसरा, जब आप सप्लीमेंट को खोलते है तो यह अवश्य देखें की उसमें अंडर-सील मौजूद है या नहीं। अ़ंडर-सील असली प्रोड्क्ट के जैसे ही होनी चाहिए अगर ऐसा नहीं हो तो समझ लीजिए की प्रोड्क्ट के साथ छेड़खानी की गई है।
4. गलत होलोग्राम
नकली सप्लीमेंट को पता करने का सबसे आसान तरीका होलोग्राम ही है। ज्यादातर प्रतिष्ठित ब्रांडों का लोगो एक ही नजर में पहचाना जा सकता है। अगर सप्लीमेंट का लोगो गलत है तो इसके दो अर्थ निकलते है-पहला, गलत लोगो/होलोग्राम सही प्रोड्क्ट पर लगा है और दूसरा सही लोगो/होलोग्राम गलत प्रोड्क्ट पर लगा है। यह आपको थोड़ा विचित्र लग रहा होगा पर यहां हमारा इरादा बस इतना है की आप अपने पैसे का सही इस्तेमार करते हुए सही प्रोड्क्ट लें।
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5. बेस्वाद-
शायद यह आख़िरी तरीका है, सही सप्लीमेंट को पहचानने का। लेकिन इसे जरूर करे अगर आप सप्लीमेंट बदल रहे हैं तो। सप्लीमेंट को ब्लेंडर में पूरी तरह से मिलाएं अगर सप्लीमेंट नहीं मिली तो समझ लीजिए की आपका सप्लीमेंट नकली है। क्योंकि ऐसा कोई भी प्रोटिन पाऊडर दुनिया में है ही नहीं जो आसानी से मिक्स ना हो पाए। और हां अगर आपके सप्लीमेंट का स्वाद अजीब सा आए तो तुरंत उसे दुबारा चेक करें। अगर सप्लीमेंट बेस्वाद लग रहा हो, या खट्टा लग रहा हो और फ्लेवर नही आ रहा हो तो यह जरूर नकली सप्लीमेंट है।
टॉप टिप – सप्लीमेंट- जैसै की ग्लूटैमिन और क्रेटाईन स्वादहीन होते है जबतक की इसमें स्वाद जोड़ा ना जाए। पाऊडर का स्वाद उसके फ्लेवर के अनुसार नहीं आए तो इसे बदल ले या इसे दुबारा चेक करें।
6. बार कोड या क्यूआर कोड चेक करें-
आख़िरी जांच का तरीका है बार कोड या क्यूआर कोड की जांच करना। बार कोड या क्यूआर कोड ऐसा कोड है जिसका नकली रूप बनाना कठीन है। ज्यदातर नकली सप्लीमेंट बनाने वाले एक ही तरह के बार कोड का इसतेमाल करते है। इसके झांसे में ना आए और इसे ऑनलाईन जरूर चेक करे। इस खेल में जानकार होना ही सर्वोत्तम उपाय है।